अवगत हो अपने लोकनि केँ -
अवगत हो अपने लोकनि केँ -
विगत किछु समय सँ हम एहि मूहिम में अपने लोकनिक आदेश पर लागल छी, हर प्रकार सऽ, हर दृष्टिकोण सऽ हम चाहैत छी जे अपने लोकनिक इ सपना साकार हो। किछु बात हमरा जे अनुभव में आयल से अपने लोकनि सँ शेयर कय रहल छी, राय देबय लेल। आगू कोना बढी, ताहि पर अपने लोकनिक सुझाव के लेल हम एहि विन्दुपर प्रकाश डालैक लेल चाहैत छी। जय मैथिली! जय मिथिला!!
१. एहि मूहिम में केवल त्याग एवं बलिदान के सच्चा हृदय सँ स्वीकार करनिहार बन्धुगण, भद्र-मानुख आगू आबि रहल छथि। हुनका लोकनिक सभ विचार सदिखन उच्च रहल आ रहबो करत - भले ओ दहेज के बात हो वा सामाजिक कोनो भी अन्य बुराई के बात, ओ सभ सदैव हर तरहें एहि समाज के अगुवाई कयलथि आ करताह। एहि रीढरूपी त्यागक मूर्ति सभके बेर-बेर नमन् करी। एहेन व्यक्ति सभके संख्या बहुत कम - कहु ने सैकड़ामें पाँच। :(
२. गरीब आदमी - आम आदमी! जी! हिनका लेल एहि मूहिम के प्रति आँखिमें नोर भरैत छन्हि। ओ सभ चाहैत छथि जे दहेज के प्रथा रहैक लेकिन स्वेच्छा सऽ जे अपन बेटी-बहिनके विवाह करै में सकैथ ताहिपर कोनो जबरदस्ती वा नाजायज माँग नहि थोपल जाय। गरीब आदमी - आम आदमी आजुक एहि महंगाई के संसारमें बहुत मुश्किल साथ अपन जीवन निर्वाह करैत छथि, बचत एतेक नहि छन्हि जे बेटीके विवाह करताह तऽ लाखोमें व्यवस्था गानि सकैत छथि, खान-पिन दिन अनेक संपदा लय के वर-पक्ष के भेट कय सकैत छथि, विवाहके दिन छहर-महर-तीन पहर करैत बाराती स्वागत-सत्कार कय सकैत छथि... वर-विदाई एवं द्विरागमन तक अनेक विध-व्यवहार के भार उठा सकैत छथि... । :( एहि मूहिम में गरीब आदमी - आम आदमी हर तरह सऽ सहयोग देबय लेल तैयार छथि। हिनके बाहूल्यता रहत आगामी दिन में वास्तविक धरतीपर सदस्यके रूपमें।
३. एहि मूहिम के विरोध मध्यमवर्गीय परिवार तरफ सऽ बेसी देखय में आबि रहल अछि - आ, आइ मध्यमवर्गीय परिवार के संख्या कम नहि अछि। यदि प्रतिशतताके आधारपर निकालय जाय तऽ हमरा बुझने ५०-६०% लोक मध्यमवर्गीय परिवार छथि। समस्या एहनो नै छैक जे सभ मध्यमवर्गीय परिवार दहेज के प्रलोभनमें छथि... नहि... नहि... आखिर बेटीवाला इहो छथि। तखन बेटामें बड़का मुँह, बेटीमें गरीब। देखावा अनेक! बेटाके बहुत शौख... बरियाती एना जाय, पटाखा फोड़ब, यार-दोस्त दारू पी के नाचत, बैण्ड बाजा, सुट-पैण्ट टाइ जुत्ता पहिरि के विवाह हेतु जायब, हम इ करब ओ करब कि करब यार वाला हाल अछि। बेटाके बापो एहि घड़ी इ बिसरि जैत छथि जे समैध के कोढ-करेज टूटि रहल हेतैक... बस रभाइसमें मस्त। बाप रे बाप!! देखयवाला होइछ एहि मध्यमवर्गीय परिवारके रभाइस। दहेज के प्रमुख बढावा एहि वर्ग सऽ भेट रहल छैक, जेना बुझैछ। तहु में बेसी ओ परिवार जिनकर एक बेटा एस.एस.सी. वा बैंकिंग वा क्लेरिकल वा एतय तक जे सरकारी पियुन बनल अछि - ताहि परिवार के मुँह तऽ देखयवाला होइछ। :)
४. मिथिलाके बेटी चुप किऐक?? इ प्रश्न हमरा बहुत खैछ। :( बहुत सोच-विचार केलाके बाद हम एक निर्णय पर पहुँचलहुँ जे गरीब तबका के बेटीमें शिक्षा के बहुत प्रधानता मजबूरीके चलते नहि छैक। हुनका लोकनिक बेटी या तऽ मैट्रीक के बाद पढाई छोड़ि दैछ, वा तेकर बाद प्राइवेट सऽ पढैत जेना-तेना घिसियौर कटैत उच्च शिक्षा हासिल करैछ... भगवती सहाय भेलखिन, माय-बाप कनेक उत्साही भेटल कि मुश्किल सऽ १०% गरीबोके बेटी आब आगू बढि रहल छथि। बाकी सभ विवाह सऽ पहिने गुमनाम जीवन बिताबैछ - अपन कोनो पहचान नहि, कोनो मान नहि, कोनो सम्मान नहि...!! हम बहुत कनैत छी जखन हिनका लोकनिक हाल देखैत छी, कारण असहाय मजबूर प्रवीण वा कोनो एक व्यक्ति आखिर कैये कि सकैछ। लेकिन अवश्य संकल्पित छी, जे एक-न-एक दिन अहु बेटी-बहिन लेल लड़ब, अवश्य लड़ब। इहो काज मूलतः हिनके लोकनि लेल अछि। ताहि लेल एहि मूहिम के हम दीनानाथके मूहिम बुझैत छियैक। सभ सऽ आह्वान करैत छी जे अहाँ सभ गोटे एहिमें शरीक होय, सभके आगू बढाबी। आब, मध्यमवर्गीय परिवार के बेटी-बहिन कि करैत अछि? एकरा सभमें सदिखन एक संदेहके परिस्थिति छैक। ओहो सभ इ बुझैछ जे बाबु-माय कहियो गलत नहि सोचता, जे करता नीके करता... बस मौन अछि। यदि दहेज मुक्त मिथिलाके परिकल्पना वास्तवमें सफल होयबाक सपना देखैत छी तऽ इ भार एहि बेटी-बहिनके अपना हाथ में लेबऽ के छैक। सभ तरहें यैह सभ सक्षम छथि - आब मौन अवस्थाके त्याग करू आ अपन लेल कमो तऽ गरीबके बेटीके लेल झाँसी की रानी समान एहि दहेज लोभी समाज सँ लड़ाई के लेल तैयार होउ। एकर उपरान्त लगभग २०% बेटी-बहिन जे सम्पन्न परिवार सँ अबैत छथि - हुनका लोकनिमें ५% अति उच्च विचारधारा के बुझू देवी समान एहि मूहिम में अपन सर्वस्व दैक लेल तैयार छथि, मुदा ओहो हेरायल छथि, लाज-प्रथा, पारिवारिक बंधन, कि तऽ कि!! १५% बस आम मैथिलके समान न एम्हरे न ओम्हरे, जेम्हरे-तेम्हरे!! हर हर!! :) एहि मूहिम के वास्तविक सफलताके सभ सँ पैघ कमजोरी यैह थीक। अपने चिन्तक एवं विद्वान् सभ सँ हम एहि विन्दुपर बेसी सोचैक लेल आग्रह करब कि इ सभ कोना के एहि मूहिम के बागडोर अपना हाथ में लेती, कोनाके दहेज लोभी बाहुल्य समाजके प्रताड़ित करती आ कोनाके हुनका लोकनि के लाइन पर अनतीह। एहि विन्दुपर बेसी सोचबाक जरुरी अछि।
५. सक्षम एवं नेतृत्व पक्ष - विधायिका, प्रशासक, न्यायपालिका - प्रजातंत्रके इ तीनू सशक्त आधार एहि दहेजके दानव सऽ हारल बुझैछ। लोक सभ एहि तीनू संग ओहिना आँखमिचौली खेला रहल अछि जेना अपराधी सभ हर तन्त्रके सक्रिय रहला के बावजूद अपराध करनै नहि छोड़ैछ। :( इ बहुत दुःखद अछि, आ समग्र समाज एहि व्यवस्थाके चोट प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूपमें झेलैछ... तखन इहो सही छैक जे वैज्ञानिक व्यवस्था के कमी बुझैछ। दहेज सँ लड़ैक लेल बाजत सभ, मुदा करत केओ नहि। :( हम पहिले सेहो एक बेर अपने लोकनि सँ कहने रही कि यदि दहेज के टैक्सेबल बना देल जाय तऽ एकर दूरगामी असर पड़तैक। तखन अपने लोकनिक विचार के आमंत्रण करैत छी।
समाजमें रहनिहार प्रत्येक व्यक्ति के अपन स्वतंत्र विचार राखऽ के अधिकार छन्हि।
जय मैथिली! जय मिथिला!!
हरिः हरः!!
विगत किछु समय सँ हम एहि मूहिम में अपने लोकनिक आदेश पर लागल छी, हर प्रकार सऽ, हर दृष्टिकोण सऽ हम चाहैत छी जे अपने लोकनिक इ सपना साकार हो। किछु बात हमरा जे अनुभव में आयल से अपने लोकनि सँ शेयर कय रहल छी, राय देबय लेल। आगू कोना बढी, ताहि पर अपने लोकनिक सुझाव के लेल हम एहि विन्दुपर प्रकाश डालैक लेल चाहैत छी। जय मैथिली! जय मिथिला!!
१. एहि मूहिम में केवल त्याग एवं बलिदान के सच्चा हृदय सँ स्वीकार करनिहार बन्धुगण, भद्र-मानुख आगू आबि रहल छथि। हुनका लोकनिक सभ विचार सदिखन उच्च रहल आ रहबो करत - भले ओ दहेज के बात हो वा सामाजिक कोनो भी अन्य बुराई के बात, ओ सभ सदैव हर तरहें एहि समाज के अगुवाई कयलथि आ करताह। एहि रीढरूपी त्यागक मूर्ति सभके बेर-बेर नमन् करी। एहेन व्यक्ति सभके संख्या बहुत कम - कहु ने सैकड़ामें पाँच। :(
२. गरीब आदमी - आम आदमी! जी! हिनका लेल एहि मूहिम के प्रति आँखिमें नोर भरैत छन्हि। ओ सभ चाहैत छथि जे दहेज के प्रथा रहैक लेकिन स्वेच्छा सऽ जे अपन बेटी-बहिनके विवाह करै में सकैथ ताहिपर कोनो जबरदस्ती वा नाजायज माँग नहि थोपल जाय। गरीब आदमी - आम आदमी आजुक एहि महंगाई के संसारमें बहुत मुश्किल साथ अपन जीवन निर्वाह करैत छथि, बचत एतेक नहि छन्हि जे बेटीके विवाह करताह तऽ लाखोमें व्यवस्था गानि सकैत छथि, खान-पिन दिन अनेक संपदा लय के वर-पक्ष के भेट कय सकैत छथि, विवाहके दिन छहर-महर-तीन पहर करैत बाराती स्वागत-सत्कार कय सकैत छथि... वर-विदाई एवं द्विरागमन तक अनेक विध-व्यवहार के भार उठा सकैत छथि... । :( एहि मूहिम में गरीब आदमी - आम आदमी हर तरह सऽ सहयोग देबय लेल तैयार छथि। हिनके बाहूल्यता रहत आगामी दिन में वास्तविक धरतीपर सदस्यके रूपमें।
३. एहि मूहिम के विरोध मध्यमवर्गीय परिवार तरफ सऽ बेसी देखय में आबि रहल अछि - आ, आइ मध्यमवर्गीय परिवार के संख्या कम नहि अछि। यदि प्रतिशतताके आधारपर निकालय जाय तऽ हमरा बुझने ५०-६०% लोक मध्यमवर्गीय परिवार छथि। समस्या एहनो नै छैक जे सभ मध्यमवर्गीय परिवार दहेज के प्रलोभनमें छथि... नहि... नहि... आखिर बेटीवाला इहो छथि। तखन बेटामें बड़का मुँह, बेटीमें गरीब। देखावा अनेक! बेटाके बहुत शौख... बरियाती एना जाय, पटाखा फोड़ब, यार-दोस्त दारू पी के नाचत, बैण्ड बाजा, सुट-पैण्ट टाइ जुत्ता पहिरि के विवाह हेतु जायब, हम इ करब ओ करब कि करब यार वाला हाल अछि। बेटाके बापो एहि घड़ी इ बिसरि जैत छथि जे समैध के कोढ-करेज टूटि रहल हेतैक... बस रभाइसमें मस्त। बाप रे बाप!! देखयवाला होइछ एहि मध्यमवर्गीय परिवारके रभाइस। दहेज के प्रमुख बढावा एहि वर्ग सऽ भेट रहल छैक, जेना बुझैछ। तहु में बेसी ओ परिवार जिनकर एक बेटा एस.एस.सी. वा बैंकिंग वा क्लेरिकल वा एतय तक जे सरकारी पियुन बनल अछि - ताहि परिवार के मुँह तऽ देखयवाला होइछ। :)
४. मिथिलाके बेटी चुप किऐक?? इ प्रश्न हमरा बहुत खैछ। :( बहुत सोच-विचार केलाके बाद हम एक निर्णय पर पहुँचलहुँ जे गरीब तबका के बेटीमें शिक्षा के बहुत प्रधानता मजबूरीके चलते नहि छैक। हुनका लोकनिक बेटी या तऽ मैट्रीक के बाद पढाई छोड़ि दैछ, वा तेकर बाद प्राइवेट सऽ पढैत जेना-तेना घिसियौर कटैत उच्च शिक्षा हासिल करैछ... भगवती सहाय भेलखिन, माय-बाप कनेक उत्साही भेटल कि मुश्किल सऽ १०% गरीबोके बेटी आब आगू बढि रहल छथि। बाकी सभ विवाह सऽ पहिने गुमनाम जीवन बिताबैछ - अपन कोनो पहचान नहि, कोनो मान नहि, कोनो सम्मान नहि...!! हम बहुत कनैत छी जखन हिनका लोकनिक हाल देखैत छी, कारण असहाय मजबूर प्रवीण वा कोनो एक व्यक्ति आखिर कैये कि सकैछ। लेकिन अवश्य संकल्पित छी, जे एक-न-एक दिन अहु बेटी-बहिन लेल लड़ब, अवश्य लड़ब। इहो काज मूलतः हिनके लोकनि लेल अछि। ताहि लेल एहि मूहिम के हम दीनानाथके मूहिम बुझैत छियैक। सभ सऽ आह्वान करैत छी जे अहाँ सभ गोटे एहिमें शरीक होय, सभके आगू बढाबी। आब, मध्यमवर्गीय परिवार के बेटी-बहिन कि करैत अछि? एकरा सभमें सदिखन एक संदेहके परिस्थिति छैक। ओहो सभ इ बुझैछ जे बाबु-माय कहियो गलत नहि सोचता, जे करता नीके करता... बस मौन अछि। यदि दहेज मुक्त मिथिलाके परिकल्पना वास्तवमें सफल होयबाक सपना देखैत छी तऽ इ भार एहि बेटी-बहिनके अपना हाथ में लेबऽ के छैक। सभ तरहें यैह सभ सक्षम छथि - आब मौन अवस्थाके त्याग करू आ अपन लेल कमो तऽ गरीबके बेटीके लेल झाँसी की रानी समान एहि दहेज लोभी समाज सँ लड़ाई के लेल तैयार होउ। एकर उपरान्त लगभग २०% बेटी-बहिन जे सम्पन्न परिवार सँ अबैत छथि - हुनका लोकनिमें ५% अति उच्च विचारधारा के बुझू देवी समान एहि मूहिम में अपन सर्वस्व दैक लेल तैयार छथि, मुदा ओहो हेरायल छथि, लाज-प्रथा, पारिवारिक बंधन, कि तऽ कि!! १५% बस आम मैथिलके समान न एम्हरे न ओम्हरे, जेम्हरे-तेम्हरे!! हर हर!! :) एहि मूहिम के वास्तविक सफलताके सभ सँ पैघ कमजोरी यैह थीक। अपने चिन्तक एवं विद्वान् सभ सँ हम एहि विन्दुपर बेसी सोचैक लेल आग्रह करब कि इ सभ कोना के एहि मूहिम के बागडोर अपना हाथ में लेती, कोनाके दहेज लोभी बाहुल्य समाजके प्रताड़ित करती आ कोनाके हुनका लोकनि के लाइन पर अनतीह। एहि विन्दुपर बेसी सोचबाक जरुरी अछि।
५. सक्षम एवं नेतृत्व पक्ष - विधायिका, प्रशासक, न्यायपालिका - प्रजातंत्रके इ तीनू सशक्त आधार एहि दहेजके दानव सऽ हारल बुझैछ। लोक सभ एहि तीनू संग ओहिना आँखमिचौली खेला रहल अछि जेना अपराधी सभ हर तन्त्रके सक्रिय रहला के बावजूद अपराध करनै नहि छोड़ैछ। :( इ बहुत दुःखद अछि, आ समग्र समाज एहि व्यवस्थाके चोट प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूपमें झेलैछ... तखन इहो सही छैक जे वैज्ञानिक व्यवस्था के कमी बुझैछ। दहेज सँ लड़ैक लेल बाजत सभ, मुदा करत केओ नहि। :( हम पहिले सेहो एक बेर अपने लोकनि सँ कहने रही कि यदि दहेज के टैक्सेबल बना देल जाय तऽ एकर दूरगामी असर पड़तैक। तखन अपने लोकनिक विचार के आमंत्रण करैत छी।
समाजमें रहनिहार प्रत्येक व्यक्ति के अपन स्वतंत्र विचार राखऽ के अधिकार छन्हि।
जय मैथिली! जय मिथिला!!
हरिः हरः!!
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