आउ! दहेज उन्मूलन योजना बनाउ...
एहि जालवृतपर बेसी युवक लोकनिक जमघट अछि, एहि बात के ध्यानमें रखैत - संगहि अन्य किछु थ्रेडपर विभिन्न प्रकारक वार्तालाप, आलाप-प्रलाप, आदि के सेहो ध्यानमें रखैत - आ तहु सऽ बेसी जे वास्तविक जीवनमें हमरा-अहाँसंग वास्तवमें दहेजसँ सम्बन्धित घटना-परिघटना घटित भऽ रहल अछि - ताहि सभके समग्र रूपमें ध्यान में रखैत हम चाहैत छी जे अपने लोकनि अपन समयके सकारात्मक दिशामें प्रयोग करी - दोसर हेतु नहि, अपना हेतु शपथ खाइ जे -
"हम मानव जीवनके धारमें सभ मानवके अपनहि समान बुझि प्राकृतिक न्यायसँ भरल व्यवहार करब।"
एहि शपथकेर मूल अर्थ एतबे छैक जे हम अपना लेल जे दोसरसँ अपेक्षा रखैत छी, हमहुँ दोसर प्रति तहिना श्रद्धा-भावपूर्ण व्यवहार करब।
१. यदि हम अपन बेटी हेतु नीक घर-वर तकैत छी, आ पैसा-वस्तु-दहेज देबयके लेल तत्पर छी, अवश्य हम दोसरोसँ अपेक्षा राखब जे हमरो बेटा बेरमें सूदि सहित असूलब। ;) मुदा कि प्राकृतिक न्याय भेलैक एहिठाम?
हमर विचारसँ - जरुरी नहि छैक जे हम जेहि श्रेणीमें छी, ताहि श्रेणीक दोसर परिवार कोनो वैज्ञानिक तराजूपर, वेभसाइटपर, धरातलपर, सौराठ सभामें... या कोनाहु तुरन्त भेटि जाय - विरले एहेन जोड़ी बनैछ - वर-कन्याके जोड़ी जे सभ प्रकारसँ अकाट्य होइ, समधि-समधिनके सम्पन्नता एवं व्यवहारिक ज्ञानमें समानता, भाषा-धर्ममें समानता, संस्कारमें समानता, आदि अनेक बात छैक जे लोक अपन समान दोसरमें तकैत छै कुटमैतीके समय में। तऽ पहिल विन्दुपर देखल जाय तऽ इ कहनाइ असम्भव छैक जे अपने दहेज दैक लेल सक्षम छी तऽ लेबयके लेल सेहो तत्पर रहू तऽ न्याय होयत, एकदम अन्याय हेतैक। यदि अपने सहीमें मानव छी, मानवताक धर्म सर्वोपरि मानैत छी, प्राकृतिक न्यायमें विश्वास अहि तऽ एहि भ्रांतिके दूर करू। जतेक अपनेक क्षमता अहि, ताहि प्रकारसँ बेटीके विदाई करी, एवं तहिना बेटाक समयमें समधिक पक्षकेँ, स्वायत्तताकेँ, स्वेच्छाकेँ सम्मान करियौन; नहि कि माँग रखियौन, दबाव बनबियौन... वर-कन्याक आत्मा कोना एक अर्ध-नारीश्वर शिव बनत ताहिपर मात्र विचार करियौक। एहि चेतनाकेँ सदा अपनाउ आ एकरा सम्बर्धन करियौक।
एहि प्रकारसँ - हम अपने लोकनिसँ आग्रह करैत छी जे विभिन्न शर्त-हालतकेर सिरियल नंबर दैत लिखी, अपन विचार दी एवं उपलब्ध सभ सदस्यसँ विचार ली। सामाजिक चेतनाक जागृति हेतु नाटक मंचन करी, नुक्कड़ नाटक बहुत प्रभावकारी होयत। यदि अपने लोकनि एकर १० मिनट मात्र गाम-गाम, नगर-शहर, गली-कुची प्रदर्शन करब तऽ एकदम प्रभावकारी होयत।
अपनेक विचार पढबाक आश में - प्रवीण चौधरी ‘किशोर’
"हम मानव जीवनके धारमें सभ मानवके अपनहि समान बुझि प्राकृतिक न्यायसँ भरल व्यवहार करब।"
एहि शपथकेर मूल अर्थ एतबे छैक जे हम अपना लेल जे दोसरसँ अपेक्षा रखैत छी, हमहुँ दोसर प्रति तहिना श्रद्धा-भावपूर्ण व्यवहार करब।
१. यदि हम अपन बेटी हेतु नीक घर-वर तकैत छी, आ पैसा-वस्तु-दहेज देबयके लेल तत्पर छी, अवश्य हम दोसरोसँ अपेक्षा राखब जे हमरो बेटा बेरमें सूदि सहित असूलब। ;) मुदा कि प्राकृतिक न्याय भेलैक एहिठाम?
हमर विचारसँ - जरुरी नहि छैक जे हम जेहि श्रेणीमें छी, ताहि श्रेणीक दोसर परिवार कोनो वैज्ञानिक तराजूपर, वेभसाइटपर, धरातलपर, सौराठ सभामें... या कोनाहु तुरन्त भेटि जाय - विरले एहेन जोड़ी बनैछ - वर-कन्याके जोड़ी जे सभ प्रकारसँ अकाट्य होइ, समधि-समधिनके सम्पन्नता एवं व्यवहारिक ज्ञानमें समानता, भाषा-धर्ममें समानता, संस्कारमें समानता, आदि अनेक बात छैक जे लोक अपन समान दोसरमें तकैत छै कुटमैतीके समय में। तऽ पहिल विन्दुपर देखल जाय तऽ इ कहनाइ असम्भव छैक जे अपने दहेज दैक लेल सक्षम छी तऽ लेबयके लेल सेहो तत्पर रहू तऽ न्याय होयत, एकदम अन्याय हेतैक। यदि अपने सहीमें मानव छी, मानवताक धर्म सर्वोपरि मानैत छी, प्राकृतिक न्यायमें विश्वास अहि तऽ एहि भ्रांतिके दूर करू। जतेक अपनेक क्षमता अहि, ताहि प्रकारसँ बेटीके विदाई करी, एवं तहिना बेटाक समयमें समधिक पक्षकेँ, स्वायत्तताकेँ, स्वेच्छाकेँ सम्मान करियौन; नहि कि माँग रखियौन, दबाव बनबियौन... वर-कन्याक आत्मा कोना एक अर्ध-नारीश्वर शिव बनत ताहिपर मात्र विचार करियौक। एहि चेतनाकेँ सदा अपनाउ आ एकरा सम्बर्धन करियौक।
एहि प्रकारसँ - हम अपने लोकनिसँ आग्रह करैत छी जे विभिन्न शर्त-हालतकेर सिरियल नंबर दैत लिखी, अपन विचार दी एवं उपलब्ध सभ सदस्यसँ विचार ली। सामाजिक चेतनाक जागृति हेतु नाटक मंचन करी, नुक्कड़ नाटक बहुत प्रभावकारी होयत। यदि अपने लोकनि एकर १० मिनट मात्र गाम-गाम, नगर-शहर, गली-कुची प्रदर्शन करब तऽ एकदम प्रभावकारी होयत।
अपनेक विचार पढबाक आश में - प्रवीण चौधरी ‘किशोर’
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