रस्ता के रोड़ा.. (इ कोई कहानी नहीं अछि!)
सोशल नेटवर्किंग के इ जमाना में हम किछु दिन स एकटा सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक पर काफी सक्रीय रहैत छि.. अओर इ हमर अनुमान अछी जे बहुतेक लोग जे इन्टरनेट प्रयोग करैत होयताह, उ जरूर फेसबुक के बारे में बुझैत होयताह. फेसबुक पर एकटा मैथिलि स सम्बंधित बहस-सूत्र (Discussion thread) अछि जेकरा पर सदस्य सब मिथिला आ मैथिलि के बारे में अपन अपन राय विचार दैत रहैत छैथ. ओही बहस-सूत्र में एकटा माननीय सदस्य प्रश्न उठओलैथ जे हम सब मैथिल छी अओर इ मंच पर अपन राय मैथिलि के बजाय कोनो दोसर भाषा (मुख्यतः अंग्रेजी) में कियक दैत छि? बहुत गोटे के प्रतिक्रिया आयेल, किछु अपन विचार सभ्य तरीका में प्रकट केलैथ, त किछु लोग अंग्रेजी में लिखय वाला के खूब खिल्ली उदओलैथ.. (किछु अशोभनीय विशेषण भी देल गेल उनका लेल जे अपन राय अंग्रेजी में लिखैथ छैथ! जेनाकी: मुह्चोरबा, कुक्कुर के नान्गड़ इत्यादी.. :-))
Source: Nepal in Pictures (Wordpress)
मुख्यतः जे हमरा समझ में आयल उनकर सबके विचार पढला के बाद ओकर सारांश निम्नवत अछि:
(१) जे लोग अंग्रेजी में लिखैत छैथ उनका अंग्रेजी नीक जँका नहीं आवैत छाई तयं ओ मैथिलि फोरम पर अंग्रेजी में लिखित छैथ; कियाकि अगर ओ अंग्रेजी फोरम पर अंग्रेजी लिखतः ता उनकर अंग्रेजी के गलती पकड़ा जेतैइ. (हमर समझ स इ विचार त बहुत हास्यास्पद अछि, अहाँ की कहैत छि?)
(२) जे लोक अपन बच्चा सब के अंग्रेजी सिखावैत छैथ , ओ अपन बच्चा के भविष्य पर ग्रहण लगावैत छैथइ.
(३) अगर कोई सदस्य अंग्रेजी में अपन विचार लिखने छैथ, त फोरम के करता-धर्ता (Moderators) के द्वारा तुरंत ओही विचार (Comments) के मिटा (Delete) देल जाओइ. (हमर राय: इ त ओहिना भ गेल जेनाकी सीयार-सारस के कहानी, जेकरा में मेहमान के बजाक उनका भुखले राखु कियाक त उनकर खाई के तरीका मेजबान स अलग थिक!)
जहाँ तक हमार समझ अछि, कियो गोटे के विचार प्रकट करै में भाषा के रुकावट ताबैत धरी नहीं होयबाक चाही जाबित धरी पाठक/सदस्य (Audience) के ओही भाषा के समझाई में कोनो समस्या नहीं होई. मातृभाषा के प्रयोग आ बढ़ावा देनाई अत्यावश्यक थिक परन्तु अगर अहाँ एही चीज में उलझब त अपन आप के कूपमंडूक बना लेब. हम इ बातक हार्दिक समर्थन करैत छि जे नव-पीढी के लोग के मैथिलि अधिकाधिक प्रयोग करबाक चाही, परन्तु अगर अहाँ के इच्छा अछि जे हमर प्रदेश भी दोसर (विकसित/संपन्न) प्रदेश के माफिक या अओर नीक होय त हमरा सब के मानसिक रूप स अधिक विकसित होबय पडत. महात्मा गाँधी कहने छैथ, "हम नै चाहैत छि जे हमर घरक चारू दिस स दिवार रहै आ हमर घरक खिड़की सब हमेशा बंद रहै. हमर इच्छा अछी जे सब तरहक संस्कृति के प्रवेश हमर घर में होय; परन्तु, इ बातक ध्यान रखे पडत जे बाहरक संस्कृति स हमर कदम नै डगमगाई.(I do not want my house to be walled in on all sides and my windows to be stuffed. I want the cultures of all the lands to be blown about my house as freely as possible. But I refuse to be blown off my feet by any, by M. K. Gandhi)"
Image Courtesy: National Translation Mission
सम्मानित पाठक-गण, अहूँ सब सोचैत होयब जे 'दहेजमुक्त मिथिला' के मंच पर हम इ की लिख रहल छि? से, आब हम मुद्दा के बात पर आबैत छि.
मिथिला के दहेज़ के मकडजाल स मुक्त करै के रस्ता में सबस पैघ बाधा हमर सबहक एहन तरहक सोच अछि! जाधैर हम सब अपन सोच के कनी विस्तृत नै करबय, ताबैत हम सब इ कुरीति के केनाक दूर क सकैत छि? एही दिशा में हमर तर्क अछि जे:
(१) अपन सोच के विस्तृत करी ताकि हम सब भाषाई अओर भौगोलिक सीमा स आगू बढ़ी के इ मुद्दा पर मंथन होय.
(२) इतिहास गवाह अछि जे जे गोटे अपना आप के एही तरहक बंधन में सिमित केतह, ओ या त विकास नहीं क सकलाह या धीरे धीरे ख़त्म भ गेलाह. वर्तमान में अगर अहाँ दुनिया के साथ चलबाक इच्छुक थिक त अहांके सीमान्त सोच स आगू बढ़ पडत. समस्या चाहे दहेज़ के होय या अशिक्षा के, जाबित हम सब अपन सोच नहीं विस्तृत करबय, ताबैत हम सब ओकरा स लड़ी नहीं सकैत छि.
(३) एकटा मुख्य गप्प, जे माननीय लोग अंग्रेजी में प्रकट विचार के ल क अतेक सख्त-प्रतिक्रियावादी भ सकैत छैथ, ओ दहेज़ (या दहेजक विभिन्न रूप) स्वरूपी प्रथा के दूर करै के बात केनाक स्वीकार करताह? आखिर दहेज़ प्रथा भी त हमर सबहक संस्कृति स जुडल अछि (या कालांतर में संस्कृति सं जोड़ी देल गेल अछि!)!
(४) दहेज़ प्रथा के मिटाबाई के लेल हमरा सबके काफी प्रतिरोध के सामना कराय पडत, इ बात त बुझल थिक. अगर हम अपन बहिन-बेटी के स्वाबलंबी नहीं बनायब त ओ विवाहक बाद ओही स्थिति में रहत जे में हमर सबके दादी-नानी अओर पूर्वज-स्त्रीगण रहैत छलैथ. स्वाबलंबी बनाबाई के उद्देश्य ओकरा पति के सहयोग देबय के योग्य बनोनाई अछि, मानसिक, वैचारिक, सामाजिक, अओर वक्त पडला पर आर्थिक सहयोग भी. एही के लेल भाषाई या क्षेत्रीय सीमा स ऊपर उठय पडत. (हम इ बातक उम्मीद करैत छि जे किछु गोटा हमर राय स पूर्ण रूपेण सहमत नहीं होयताह, परन्तु इ त सामूहिक वार्तालाप के अभिन्न अंग थिक न??)
(५) किछु लोग के मन में इ शंका भ सकैत छै जे ऐना त हमर सबहक मैथिलि के सशक्त करै के उद्देश्य नहीं सफल होयतै! लेकिन, अहाँ गौर करू, दोसर भाषा के प्रयोग आ समर्थन मैथिलिक विकास में संभवतः कोनो बाधा नहीं डालत. हम अगर वैचारिक रूप स संपन्न रहब तखने हम सब अपन भाषा के अओर सशक्त करै के दिस कोनो ठोस कदम उठा सकैत छि. हम अगर सिर्फ-आ-सिर्फ मैथिलि के प्रयोग करै के समर्थक रहब त संभवतः हमरा सभके उन्नति के पर्याप्त अवसर नहीं भेट पाओत आ आख़िरकार अपन भाषा के ल क अपन मन में सम्मान कम भ जायेत; एकर विपरीत अगर हम समकालीन विचारधारा के समर्थन करैत आई के जमाना में जे भी जरूरत होयत ओ भाषा में भी संपन्न होयब त सामाजिक, वैचारिक, आ संगही आर्थिक उन्नति भी होयत.
हाँ, एकटा बात त अन्तर्निहित अछि जे हर चीज के नीक आ बेजाय दुनूं तरहक प्रतिफल होयत अछि, से ल क परिणाम हमरा सब पर निर्भर करैत अछि जे हम सब कोना क अपन सोचक दायरा विस्तृत करैत मिथिला के एही कुरीति स निजात दियाबई के दिशा में अग्रसर होयत थिक या केवल संकुचित मुद्दा सब पर अपन गाल बजाबाई रहब?
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें