बेटी के दहेज़ के भार (अभय दीपराज )
बेटी के दहेज़ के भार..........
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!
जे बेटी जननी समाज के, मूल प्रेम - स्नेह के !
अपमानक हम पातक लेत छी, ओहि बेटी के देह के !
अपन मान सँ हम अविवेकी, अपने कयलौं दुर्व्यवहार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!१!!
बड़ ज्ञानी, बड़ शिष्टाचारी, मानव बनि हम जन्म लेलौं !
नीति - न्याय के परिभाषा हम कयलौं, बड़ सद्कर्म केलों !!
सब यश पर भारी ई अपयश, संतानक कयलौं व्यापार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!२
जेहि बेटी में दुर्गा - कमला और सीता के वास अहि !
ओ बेटी अपना नैहर पर बोझ बनल, उपहास अहि !
एहन पातकी - पापी छी हम, हाँ, एहि पातक पर धिक्कार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!३!!
बेटी के अपमानक ई विष, उपटा देलक जों ई फूल !
हमर - अहाँ के, सबहक आँगन में नाचत विनाश के शूल !!
संकट ई गंभीर भेल अब, करिऔ एहि पर तुरत विचार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!४!!
आइ अगर ई व्यथा हमर अछि, काल्हि अहाँ के ई अभिशाप !
एक - एक कय पेरि रहल अछि, सबके एहि ज्वाला के दाप !!
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!५!!
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!
जे बेटी जननी समाज के, मूल प्रेम - स्नेह के !
अपमानक हम पातक लेत छी, ओहि बेटी के देह के !
अपन मान सँ हम अविवेकी, अपने कयलौं दुर्व्यवहार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!१!!
बड़ ज्ञानी, बड़ शिष्टाचारी, मानव बनि हम जन्म लेलौं !
नीति - न्याय के परिभाषा हम कयलौं, बड़ सद्कर्म केलों !!
सब यश पर भारी ई अपयश, संतानक कयलौं व्यापार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!२
जेहि बेटी में दुर्गा - कमला और सीता के वास अहि !
ओ बेटी अपना नैहर पर बोझ बनल, उपहास अहि !
एहन पातकी - पापी छी हम, हाँ, एहि पातक पर धिक्कार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!३!!
बेटी के अपमानक ई विष, उपटा देलक जों ई फूल !
हमर - अहाँ के, सबहक आँगन में नाचत विनाश के शूल !!
संकट ई गंभीर भेल अब, करिऔ एहि पर तुरत विचार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!४!!
आइ अगर ई व्यथा हमर अछि, काल्हि अहाँ के ई अभिशाप !
एक - एक कय पेरि रहल अछि, सबके एहि ज्वाला के दाप !!
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!५!!
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!
रचनाकार- अभय दीपराज
1 टिप्पणियाँ:
bahut nik abhay ji ahan t muhak bat chhin lelo जे बेटी जननी समाज के, मूल प्रेम - स्नेह के |
अपमानक हम पातक लेत छी, ओहि बेटी के देह के ||
अपन मान सँ हम अविवेकी, अपने कयलौं दुर्व्यवहार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || १ ||
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